वास्तु टिप्स: वास्तु शास्त्र के अनुसार गणेश जी को ना बनाएं द्वारपाल
पूजा स्थल वास्तु टिप्स: वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में देवी देवताओं का स्थापना स्थल घर की सुख शांति पर असर डालता है। इसलिए पूजा स्थल के निर्माण में वास्तु सम्मत बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए
घर में मांगलिक कार्यक्रम के शुभारंभ के लिए श्री गणेश की, बुद्धि की प्राप्ति के लिए भी श्री गणेश, किसी भी तरह के काम के लिए हम सबसे पहले श्री गणेश का ही ध्यान करते हैं। यात्रा करने से पूर्व और सकुशल लौटने पर भी श्री गणेश को ही धन्यवाद करते हैं। और तो और हम अपने घर के मुख्य द्वार पर भी गणेश जी को स्थापित कर देते हैं, ताकि घर में किसी भी प्रकार का अमंगल प्रवेश ना करें और जीवन निर्विघ्न गुजरे। लेकिन बस बहुत ही कम लोग को ज्ञात है कि घर के मुख्य दरवाजे पर गजानन की प्रतिमा की स्थापना नहीं करनी चाहिए। ऐसा वास्तु ग्रंथों में भी वर्णित है। क्योंकि आते जाते लोगों का मूर्ति से स्पर्श होता है। इसलिए घर के बड़े द्वार पर गणेश की मूर्ति विराजमान नहीं होनी चाहिए। इतना ही नहीं वास्तु शास्त्र तो घर के भीतर किसी भी स्थान पर पूजा स्थल के निर्माण को सही नहीं बताता। शास्त्रों में भी स्पष्ट है कि मंदिर परिसर के 300 मीटर की परिधि में थूकना महापाप है। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि छोटे मकान या फ्लैट में, जिनमें कुछ ही मीटर की दूरी पर शयन कक्ष, शौचालय, रसोईघर, स्नान गृह अदि सब कुछ हो तो वहां शास्त्रों में मंदिर के लिए तय किए गए नियमों का पालन कैसे संभव है? आमतौर पर सबसे बड़ा दोष घर के अंदर पूजा स्थल पर होता है। इसलिए पूजा घर के निर्माण से पहले कुछ विशेष नियमों पर गौर करना चाहिए।
पूजा स्थल के निर्माण में वास्तु सम्मत बातों का रखें विशेष ध्यान
► मकान की उत्तर पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में देवताओं का वास होता है। इसलिए यह कोण पूजा स्थल के लिए सर्वोत्तम है।
►घर में किसी भी प्रतिमा अर्थात मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा ना करें। मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर या दक्षिण दिशा की ओर ही रखें।
►पूजा स्थल कभी भी सीढ़ियों के नीचे, ठोकर खाने वाली य जूता चप्पल रखने वाली जगह के पास ना बनाएं। मंदिर शौचालय के पास भी नहीं बनाएं।
►मंदिर की पूर्व या पश्चिम दिशा में गणेश जी की प्रतिमा ना रखें।
►बिना सोचे समझे किसी भी दिशा की और गणेश जी का मुख करके घर में मुख्य द्वार पर न लगाएं।
►हनुमान जी की मूर्ति हमेशा उत्तर दिशा में स्थापित करें, ताकि उनकी दृष्टि हमेशा दक्षिण की ओर ही रहे। इससे घर में कोई अनिष्ट नहीं होता।
►जैन तीर्थ करो कि चित्र पश्चिम दिशा में रखें।
►ज्ञान प्राप्ति हेतु उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजन करें।
►सुख शांति के लिए पूर्व की ओर मुख करके पूजन करें। भौतिक सुख सुविधा के लिए पश्चिम मुखी होकर पूजा करें
►तंत्र मंत्र एवं सिद्धि प्राप्ति हेतु दक्षिण की ओर दृष्टि रख कर हमेशा पूजन करें।
►पूजा घर में कभी भी घर के पितरों की या मृतक की तस्वीरें ना लगाएं।
►ध्यान रखें कि एक ही पूजा घर में कई देवी-देवताओं का वास ना हो। इससे शांति के बदले गृहक्लेश उत्पन्न हो सकता है।